चीन की नई नीतियों से संकट में भारत का ऑटोमोबाइल सेक्टर: जल्द खत्म हो सकता है मैग्नेट का स्टॉक
भारत का ऑटोमोबाइल सेक्टर इन दिनों गंभीर आपूर्ति संकट से जूझ रहा है और इसके केंद्र में हैं — रेयर अर्थ मैग्नेट्स, खासकर नीओडिमियम-आयरन-बोरोन (NdFeB) मैग्नेट्स, जो इलेक्ट्रिक और सामान्य दोनों प्रकार के वाहनों में बेहद आवश्यक होते हैं।
क्या बदला है?
इस आपूर्ति संकट की शुरुआत अप्रैल से हुई, जब चीन ने दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के निर्यात पर कड़े नियंत्रण लागू किए। अब इन मैग्नेट्स को निर्यात करने के लिए निर्यातकों को सरकार से विशेष लाइसेंस और खरीदारों से विस्तृत एंड-यूज़ सर्टिफिकेट प्रस्तुत करना अनिवार्य हो गया है।
हालाँकि इन बदलावों को केवल "प्रक्रियात्मक सुधार" बताया जा रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि इससे क्लियरेंस की प्रक्रिया में भारी देरी हो रही है। The Economic Times की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के लिए भेजे गए कई कंटेनर चीन के बंदरगाहों पर अटके हुए हैं और उनके आगे बढ़ने की कोई स्पष्ट समय-सीमा नहीं है।
भारत पर असर
-
भारत की कंपनियों को अभी तक चीन से निर्यात की स्वीकृति नहीं मिली है, जबकि कई यूरोपीय कंपनियों को पहले ही हरी झंडी मिल चुकी है।
-
उद्योग जगत के अधिकारियों का मानना है कि मौजूदा स्टॉक जून की शुरुआत तक खत्म हो सकता है, जिससे उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
ये मैग्नेट्स वाहनों के मोटर, ब्रेक, स्टीयरिंग, वाइपर और ऑडियो सिस्टम में इस्तेमाल होते हैं। ऐसे में अगर आपूर्ति बाधित रही, तो वाहन निर्माण पूरी तरह रुक सकता है।
क्या उठाए जा रहे हैं कदम?
इस संकट से निपटने के लिए भारत के Society of Indian Automobile Manufacturers (SIAM) और Automotive Component Manufacturers Association (ACMA) के प्रतिनिधि मंडल के जल्द ही चीन यात्रा पर जाने की संभावना है। उनका उद्देश्य चीनी अधिकारियों से बातचीत कर निर्यात प्रक्रिया में तेजी लाना है।
साथ ही, भारत के वाणिज्य मंत्रालय और विदेश मंत्रालय भी इस दिशा में सक्रिय हैं और राजनयिक माध्यमों से समस्या का समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं।
क्यों इतने जरूरी हैं ये मैग्नेट्स?
-
FY24 में भारत ने 460 टन NdFeB मैग्नेट्स आयात किए — और वो भी लगभग पूरी तरह चीन से।
-
FY25 में यह आंकड़ा 700 टन तक पहुंचने की उम्मीद थी।
-
इनकी लागत अधिक नहीं है, लेकिन कार्यक्षमता के लिहाज़ से ये वाहन निर्माण की रीढ़ की हड्डी हैं।
-
अभी तक इनका कोई टिकाऊ विकल्प मौजूद नहीं है, जिससे उत्पादन लाइनें पूरी तरह चीन पर निर्भर हैं।
दीर्घकालिक समाधान की दिशा में भारत के कदम
दीर्घकालिक समाधान के रूप में भारत अब इन मैग्नेट्स के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने की योजना बना रहा है। इस संबंध में 3 जून को Ministry of Heavy Industries द्वारा एक उच्चस्तरीय बैठक आयोजित की जाएगी।
बैठक में घरेलू निर्माण के लिए:
-
प्रोत्साहन योजनाएं (Incentives)
-
इन्फ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट
-
और तकनीकी सहयोग जैसे मुद्दों पर चर्चा होगी।
✅ निष्कर्ष
भारत का ऑटो सेक्टर एक अनदेखे संकट के मुहाने पर खड़ा है। यदि जल्द समाधान नहीं निकला, तो जून के बाद से वाहन उत्पादन पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि सरकार और उद्योग संगठन सक्रिय हैं, लेकिन भविष्य की स्थिरता के लिए घरेलू विनिर्माण ही एकमात्र दीर्घकालिक उपाय नजर आता है।

0 टिप्पणियाँ