अमेरिका में ₹80 लाख की कमाई? भारत में सिर्फ़ ₹23 लाख से ही हो सकता है वही जीवनस्तर!

 


💸 अमेरिका में ₹80 लाख की कमाई? भारत में सिर्फ़ ₹23 लाख से ही हो सकता है वही जीवनस्तर!

क्या वाकई अमेरिका में काम कर रहे आपके रिश्तेदार की सालाना ₹80 लाख की तनख्वाह भारत में ₹23 लाख से टक्कर ले सकती है?
दिल्ली के शोधकर्ता शुभम चक्रवर्ती के एक वायरल पोस्ट ने इसी सवाल को उठाया है और NRI सैलरी शेखी के पीछे की सच्चाई पर रोशनी डाली है।


📌 क्या है मामला?

LinkedIn पर लिखते हुए शुभम चक्रवर्ती ने कहा:

“जब अगली बार आपका कोई दोस्त या कज़िन बोले कि वो अमेरिका में ₹80 लाख सालाना कमा रहा है, तो बस इतना कहना कि भारत में वही लाइफस्टाइल ₹23 लाख में मुमकिन है।”

उनका तर्क पूरी तरह Purchasing Power Parity (PPP) यानी क्रय शक्ति समानता पर आधारित है—एक आर्थिक सिद्धांत जो बताता है कि एक देश में पैसे की "वास्तविक ताकत" क्या है, खासतौर पर जब उसकी तुलना दूसरे देश से की जाए।


💰 भारत vs अमेरिका: खर्चों की तुलना

शुभम ने अपने पोस्ट में कुछ व्यावहारिक उदाहरण दिए, जो PPP को अच्छी तरह समझाते हैं:

  • 🍛 रेस्तरां का खाना: भारत में ₹300, अमेरिका में ₹1,700

  • 🌐 इंटरनेट बिल: भारत में ₹700, अमेरिका में ₹6,000

  • 🏠 किराया (एक जैसे घर का): भारत में ₹50,000, अमेरिका में ₹1.6 लाख

यानी अमेरिका में कमाई ज्यादा जरूर है, लेकिन खर्च उससे कहीं ज्यादा तेज़ी से बढ़ जाते हैं।


🔍 क्या है PPP?

PPP एक आर्थिक पैमाना है जिसका उपयोग IMF जैसे संस्थान करते हैं ताकि देशों की आमदनी की वास्तविक तुलना हो सके—यानी किसी देश में मिलने वाली तनख्वाह उस देश में कितनी "सच्ची ताकत" रखती है।

IMF के अनुसार, भारत और अमेरिका के बीच PPP अनुपात लगभग 3:1 है। यानी अमेरिका में ₹80 लाख की तनख्वाह का क्रय मूल्य भारत में ₹23–₹26 लाख के आसपास बैठता है।


⚠️ लेकिन क्या यह तुलना पूरी तरह सही है?

नहीं। शुभम ने खुद भी माना कि यह गणना अधूरी है। उनका कहना है:

“विकसित देशों में आमतौर पर बेहतर पब्लिक सर्विस, टेक्नोलॉजी और अवसर मिलते हैं। वहां की सामाजिक सुरक्षा भी बेहतर हो सकती है।”

अर्थशास्त्री भी चेतावनी देते हैं कि PPP एक संपूर्ण पैमाना नहीं है। इसमें मान लिया जाता है कि सभी देशों में सामान और सेवाओं की गुणवत्ता बराबर है—जो असल में सच नहीं है।

जैसे:

  • अमेरिका में स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, और कानूनी सुरक्षा की गुणवत्ता और पहुंच भारत से अलग है।

  • व्यक्तिगत ज़रूरतें—जैसे कि बच्चों की शिक्षा, परिवार का आकार या शहर का चयन—जीवनस्तर को काफी प्रभावित करते हैं।

  • PPP डेटा अक्सर सर्वेक्षणों पर आधारित होता है, जो विकासशील देशों में हमेशा सटीक नहीं होते।


📢 क्यों वायरल हुआ पोस्ट?

शुभम का पोस्ट इसलिए वायरल हुआ क्योंकि उसने एक बेहद आम लेकिन अनदेखे पक्ष को सामने लाया: तनख्वाह की संख्या से ज्यादा ज़रूरी है जीवन की गुणवत्ता और खर्च की समझ।

इस पोस्ट ने कई भारतीय पेशेवरों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या वाकई “विदेश में कमाना” मतलब “बेहतर जीवन” है?


✅ निष्कर्ष: कमाई नहीं, खर्च और संतुलन अहम

अगर आप भारत में ₹20–₹25 लाख कमा रहे हैं और समझदारी से जीवन चला रहे हैं, तो आप अमेरिका में ₹80 लाख कमाने वाले किसी व्यक्ति से कमतर नहीं हैं—कम से कम जीवनशैली के मामले में।

👉 तो अगली बार जब कोई विदेशी तनख्वाह से इम्प्रेस करने की कोशिश करे, तो PPP का तुरुप का इक्का निकालना मत भूलिए।


"बात केवल पैसों की नहीं है, बात यह है कि वो पैसा आपके लिए क्या कर सकता है।"

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