11 वर्षों में बदला भारत का रक्षा क्षेत्र: आत्मनिर्भरता, निर्यात और नारीशक्ति की नई उड़ान
भारत का रक्षा क्षेत्र बीते एक दशक में एक बड़ी क्रांति से गुज़रा है। जहां पहले आयात पर भारी निर्भरता थी, वहीं अब देश में हथियारों और रक्षा उपकरणों के निर्माण, निर्यात और सैन्य ढांचे में समावेशिता की एक नई लहर चल पड़ी है। केंद्र सरकार की 10 जून को जारी रिपोर्ट के अनुसार, बीते 11 वर्षों में इस क्षेत्र में जो प्रगति हुई है, वह न केवल आंकड़ों में बल्कि भारत की रणनीतिक सोच में भी गहराई से परिलक्षित होती है।
💰 बढ़ता रक्षा बजट, बढ़ती तैयारी
वर्ष 2013–14 में जहां भारत का रक्षा बजट ₹2.53 लाख करोड़ था, वहीं 2025–26 के लिए यह बढ़कर ₹6.81 लाख करोड़ तक पहुँच गया है। यह केवल सरकारी व्यय में इज़ाफा नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि भारत अब अपनी सैन्य शक्ति को वैश्विक मानकों पर लाने के लिए प्रतिबद्ध है।
🔧 देश में ही निर्माण: आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बड़ा कदम
रिपोर्ट के अनुसार, 2023–24 में भारत ने ₹1.27 लाख करोड़ का स्वदेशी रक्षा उत्पादन किया, जो 2014–15 की तुलना में 174% की बढ़ोतरी है। इसका अर्थ है कि अब देश अपनी रक्षा आवश्यकताओं का लगभग 65% हिस्सा खुद पूरा कर रहा है, जबकि पहले अधिकांश उपकरण विदेशों से मंगवाए जाते थे।
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2024–25 में रक्षा मंत्रालय ने ₹2.09 लाख करोड़ के कुल 193 ठेके साइन किए,
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इनमें से 177 ठेके घरेलू कंपनियों को दिए गए, जिनकी कुल लागत ₹1.69 लाख करोड़ रही।
🌍 रक्षा निर्यात में जबरदस्त उछाल
एक दशक पहले जहां भारत का रक्षा निर्यात महज़ ₹686 करोड़ था, वहीं 2024–25 में यह ₹23,622 करोड़ तक पहुँच गया। यानी 30 गुना से अधिक वृद्धि। इससे भारत अब केवल आत्मनिर्भर नहीं, बल्कि वैश्विक हथियार बाजार में एक उभरते निर्यातक के रूप में स्थापित हो रहा है।
🏢 निजी क्षेत्र और MSME की बढ़ती भागीदारी
रक्षा उत्पादन में अब निजी कंपनियों की हिस्सेदारी 21% तक पहुंच गई है, जिसमें 430 से अधिक लाइसेंस प्राप्त कंपनियाँ और 16,000 से अधिक MSMEs सक्रिय रूप से योगदान कर रही हैं। इससे भारत का रक्षा क्षेत्र अब केवल सरकारी उपक्रमों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि एक व्यापक औद्योगिक आधार बन चुका है।
👩✈️ नारीशक्ति का सम्मान: सेना में बढ़ता महिला प्रतिनिधित्व
2014 में जहां लगभग 3,000 महिलाएं भारतीय सेना में अधिकारी थीं, आज यह संख्या बढ़कर 11,000 तक पहुँच गई है।
इसके अलावा, 507 महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान किया गया है, जिससे उन्हें करियर में आगे बढ़ने का समुचित अवसर मिला है।
🔐 सुरक्षा सिद्धांतों में बदलाव और आतंकवाद पर सख्त कार्रवाई
बीते वर्षों में भारत ने केवल सैन्य बजट और निर्माण पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि रणनीतिक और सिद्धांतगत बदलाव भी किए। इसमें सीमाओं पर तेज़तर्रार ऑपरेशन, आतंकी ठिकानों पर प्रहार और आंतरिक सुरक्षा के लिए उन्नत तैनाती शामिल है।
⚠️ चुनौतियाँ अब भी मौजूद हैं
हालांकि प्रगति उल्लेखनीय है, परंतु कुछ चुनौतियाँ अब भी चिंता का विषय बनी हुई हैं:
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परियोजनाओं में देरी और गुणवत्ता नियंत्रण
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अनुसंधान एवं विकास (R&D) में अपेक्षाकृत कम निवेश
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रक्षा सार्वजनिक उपक्रम (PSUs) और निजी कंपनियों के बीच समन्वय की कमी
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इंजन, स्टील्थ सिस्टम और एडवांस सेंसर जैसे क्षेत्रों में अब भी विदेशी तकनीक पर निर्भरता
🛡️ निष्कर्ष: आत्मनिर्भरता से आत्मबल तक
बीते 11 वर्षों में भारत ने केवल रक्षा क्षमता ही नहीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण में भी बड़ा बदलाव किया है। अब भारत न केवल अपने लिए बना रहा है, बल्कि दूसरे देशों को निर्यात कर रहा है, और अपनी सेना में लैंगिक समावेशिता को भी प्राथमिकता दे रहा है।
यह सब संकेत देते हैं कि भारत अब सिर्फ एक रक्षा उपभोक्ता नहीं, बल्कि एक आत्मनिर्भर और विश्वसनीय रक्षा साझेदार बनने की राह पर तेजी से अग्रसर है।


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