चीन की सख़्ती बनी अवसर: भारत में दुर्लभ पृथ्वी धातुओं (REE) का नया युग
दुनियाभर की आपूर्ति श्रृंखलाएं उस समय हिल गईं जब चीन ने दुर्लभ पृथ्वी धातुओं (Rare Earth Elements - REE) के निर्यात पर ताज़ा प्रतिबंध लगा दिए। इन प्रतिबंधों का असर अमेरिका, जापान, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और भारत जैसे प्रमुख औद्योगिक देशों पर पड़ा है, जो इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर ऑटोमोबाइल और रक्षा क्षेत्र तक REE पर निर्भर हैं।
लेकिन इस संकट ने भारत के लिए एक बड़ा अवसर भी पैदा किया है — अपने खुद के REE संसाधनों का दोहन करके न सिर्फ आत्मनिर्भर बनना, बल्कि दुनिया को चीन के विकल्प के रूप में आपूर्ति भी देना।
भारत के पास है विशाल भंडार, लेकिन उत्पादन में पिछड़ रहा है
अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार, भारत के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दुर्लभ पृथ्वी भंडार (करीब 6.9 मिलियन टन) है। इससे आगे केवल चीन और ब्राज़ील हैं। लेकिन इसके बावजूद, भारत का वैश्विक उत्पादन में हिस्सा 1% से भी कम है, जो तकनीकी और अवसंरचनात्मक सीमाओं के कारण है।
"यह एक चेतावनी भी है और अवसर भी" — पीयूष गोयल
केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने चीन के इस कदम को "दुनिया के लिए एक चेतावनी" बताते हुए कहा कि भारत को अब "एक भरोसेमंद विकल्प के रूप में उभरने का अवसर मिला है।" वहीं अमेरिका के पूर्व ऊर्जा राजनयिक जियोफ्री प्याट ने कहा कि यह भारत-अमेरिका के सहयोग को और गहराई देने का सुनहरा मौका है।
सरकार की योजना: राष्ट्रीय क्रिटिकल मिनरल मिशन और IREL की भूमिका
भारत सरकार ने हाल ही में "नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (2025)" की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य भारत को REE में आत्मनिर्भर बनाना है। इसमें चार मुख्य स्तंभ हैं:
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अन्वेषण (Exploration)
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पर्यावरणीय मंजूरी
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बुनियादी ढांचा निर्माण
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तकनीकी क्षमता विकास
इसके अलावा, सरकारी कंपनी Indian Rare Earths Ltd (IREL) को घरेलू खनन और रिफाइनिंग क्षमता बढ़ाने के लिए सक्रिय किया जा रहा है। सरकार पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप, कैपिटल सब्सिडी और निजी निवेशकों को आकर्षित करने वाले प्रोत्साहन जैसे विकल्पों पर विचार कर रही है।
भारत की ताकत: 35% समुद्री रेत संसाधन, लेकिन तकनीकी चुनौती बड़ी
EY की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास विश्व के कुल समुद्री रेत में 35% हिस्सा है, जो REE का मुख्य स्रोत है। लेकिन समस्या यह है कि:
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भारत के पास उन्नत रिफाइनिंग तकनीक की भारी कमी है।
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चीन, जापान और अमेरिका इस क्षेत्र में पहले से तकनीकी रूप से बहुत आगे हैं।
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भारत में तकनीकी प्रतिभा और प्रशिक्षित मानव संसाधन की कमी है।
EY-Parthenon के साझेदार अभिजीत कुलकर्णी मानते हैं कि "बिना निजी क्षेत्र की भागीदारी और आधुनिक तकनीक के, भारत तेजी से प्रगति नहीं कर सकता।"
मांग बढ़ रही है: इलेक्ट्रिक वाहन, रक्षा और सेमीकंडक्टर
भारत में इलेक्ट्रिक वाहन, रक्षा उपकरण और सेमीकंडक्टर जैसी उभरती इंडस्ट्रीज़ के चलते REE की मांग लगातार बढ़ रही है। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार एक नया रियर अर्थ मैगनेट प्लांट बना रही है, जो घरेलू और निर्यात दोनों बाज़ारों की सेवा करेगा।
वैश्विक भू-राजनीति में भारत की भूमिका
चीन इस समय दुनिया का 60% REE उत्पादन और 90% रिफाइनिंग नियंत्रित करता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह भौगोलिक केंद्रीकरण वैश्विक आपूर्ति शृंखला के लिए गंभीर खतरा है।
CSIS की विशेषज्ञ ग्रेसलिन बासकरण के अनुसार, “भारत चीन की जगह नहीं ले सकता, लेकिन एक नया और स्थायी विकल्प ज़रूर बन सकता है।”
निष्कर्ष: भारत के लिए यह केवल आर्थिक नहीं, रणनीतिक अवसर है
दुर्लभ पृथ्वी धातुओं की सुरक्षा अब केवल व्यापार की बात नहीं रही — यह भू-राजनीति, टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता और वैश्विक आपूर्ति स्थिरता का प्रश्न बन चुकी है। भारत यदि समय रहते इस अवसर को रणनीतिक रूप से भुना ले, तो यह क्षेत्र भविष्य में भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत कर सकता है।

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