चीन को नजरअंदाज करना भारी पड़ेगा? जानिए क्यों भारत का 10 ट्रिलियन डॉलर का सपना Dragon के बिना अधूरा है

 Dragon को नजरअंदाज न करें: प्रमुख नीतिगत विशेषज्ञ ने बताया कि चीन के बिना भारत का 10 ट्रिलियन डॉलर का सपना वास्तविकता क्यों नहीं बन सकता

भारत और चीन के झंडे के साथ एशिया के नक्शे पर उभरती अर्थव्यवस्था का संकेत देने वाला ग्राफ — भारत की 10 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था में चीन की भूमिका का प्रतीक।

आज भारत एक बड़ी देवेलोपिंग कंट्री है जो बहुत ही डिजिटल ,मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री बाधा रही है इस साल हमारा GDP भी बाधा है मतलब टोटल इनकम / टोटल प्रोडक्शन ऐएसे ही कुछ फार्मूला होता है जिसे हमारा देश कितना आगे बढ़ा सो पता चलता है | इकोनॉमिस्ट का कहना है की 2047 तक हमारा देश पूरी तरह से डेवेलोप हो जायेगा मतलब हमे अपने पूरा 10 ट्रिलियन डोललोर इकॉनमी बनाना है |इसमे मुख्या भूमिका है चाइना की अगर भारत ने अपने इकनोमिक स्ट्रेटेजिक रिलेशन को अच्छे से नही देखा तो ये बस सपना रह जायेगा |

 

दुनिया की दो विशाल अर्थव्यवस्थाओं का रिश्ता

भारत और चीन एशिया की दो सबसे बड़ी और तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्थाएं हैं। डोनो देश विकसित होने के दावे के साथ 21वीं सदी के वैश्विक व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन जहां चीन ने मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट के क्षेत्र में अपना कब्ज़ा बनाया, वहीं भारत सर्विस सेक्टर, आईटी और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में आगे निकला है। फिर भी, दोनो के बीच एक गहरी आर्थिक परस्पर निर्भरता है जिसे नकारना असम्भव है।

चीन के साथ भारत का वार्षिक व्यापार 110 बिलियन डॉलर से अधिक है, जिसका भारत 80 बिलियन डॉलर का माल चीन से आयात करता है। ये आयात मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक्स, रसायन, सौर सेल, फार्मास्यूटिकल्स के कच्चे माल जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को छूते हैं। इसका मतलब ये है कि भारत का औद्योगिक और तकनीकी आधार अभी भी चीन पर निर्भर है। अगर भारत को अपना आर्थिक आकार बढ़ाकर 10 ट्रिलियन डॉलर तक ले जाना है, तो उसे या तो चीन की जगह कोई वैकल्पिक बनाना होगा या फिर चीन के साथ एक स्मार्ट और रणनीतिक आर्थिक संबंध बनाए रखना होगा।


भारत और चीन के झंडे के साथ एशिया के नक्शे पर उभरती अर्थव्यवस्था का संकेत देने वाला ग्राफ — भारत की 10 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था में चीन की भूमिका का प्रतीक।

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मेक इन इंडिया?

भारत ने मेक इन इंडिया पहल शुरू की ताकि विनिर्माण आधार बढ़े, रोजगार आए और देश का निर्यात क्षेत्र मजबूत हो। लेकिन जब इलेक्ट्रॉनिक्स घटकों से लेकर एपीआई (सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री) तक सब कुछ चीन से आता है, तो स्वदेशी विनिर्माण भी प्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से चीन पर निर्भर हो जाता है। एक सर्वे के मुताबिक, भारत की 70% फार्मा कंपनियां अपना कच्चा माल चीन से लेती हैं। इसका मतलब ये है कि अगर कल चीन ने कोई निर्यात प्रतिबंध लगाया तो भारत की स्वास्थ्य इंडस्ट्री संकट में पड़ सकती है। इसी तरह, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल सेक्टर भी चीन से चिप और बैटरी आयात करता है, जो विनिर्माण लागत और समयरेखा डोनो को प्रभावित करता है। अगर भारत को अपने आर्थिक सपने को वास्तविकता बनाना है, तो निर्भरता का उपयोग करने के लिए व्यवस्थित रूप से काम करना होगा या फिर चीन के साथ एक रणनीतिक व्यापार ढांचा बनाना होगा जहां दोनों देश जीत की स्थिति में होंगे।


प्रौद्योगिकी, व्यापार और विश्वास: भारत-चीन संबंधों का तीन टीका

एक मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए सिर्फ व्यापार नहीं बल्कि प्रौद्योगिकी और विश्वास भी उतना ही जरूरी है। चीन एआई, रोबोटिक्स, ग्रीन एनर्जी और ईवी (इलेक्ट्रिक व्हीकल) टेक्नोलॉजी में दुनिया का लीडर बन चुका है। भारत भी डायरेक्शन में काम कर रहा है, लेकिन वो अभी चाइना से काई साल पीछे है। अगर भारत ने 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य हासिल किया है, तो प्रौद्योगिकी का उपयोग करना होगा - जो सिर्फ पश्चिम के साथ नहीं बल्कि चीन के साथ नियंत्रित साझेदारी के लिए जरूरी है। ग्लोबल डिकॉउलिंग की दुनिया में भी कुछ कनेक्शन जरूरी हैं, जो विकास को गति देते हैं। ट्रस्ट फैक्टर में, दोनों देशों के बीच संचार चैनल खुला रहना चाहिए। हर छोटी-मोटी सैन्य घटना पर पूरी आर्थिक नीति को उल्टा देना, अल्पकालिक राष्ट्रवाद तो हो सकता है, लेकिन दीर्घकालिक विकास के लिए हानिकारक है। विशेशज्ञ कहते हैं कि विश्वास का पुनर्निर्माण करना है|


मुश्किल है, लेकिन असंभव नहीं

भारत और चीन के झंडे के साथ एशिया के नक्शे पर उभरती अर्थव्यवस्था का संकेत देने वाला ग्राफ — भारत की 10 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था में चीन की भूमिका का प्रतीक।


युवा, नौकरियां और भविष्य का विजन: चीन के रोल को नजरंदाज करने का मौका

आज भारत की 65% जनसंख्या युवा है। रोजगार, कौशल विकास और आर्थिक भागीदारी उनका अधिकार है। जब हम चीन से अलग होने की बात करते हैं, तो इसका सीधा असर विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों पर पड़ता है - जहां करोड़ों नौकरियां पैदा होती हैं। अगर चीन से आयात बंद हुआ, तो विनिर्माण लागत बढ़ेगी, उत्पादन धीमा होगा और नई नौकरियाँ पैदा नहीं होंगी। ऐसे में युवाओं के सपने और देश का सपना दोनों प्रभावित होते हैं। इसलिए नीति निर्माताओं को सोचना होगा कि उनका क्या फैसला देश के युवाओं के लिए दिलचस्प है या नहीं।

चीन के साथ टिकाऊ और सीमित भागीदारी बना कर भारत अपने विकास को गति दे सकता है। ये नीति दृष्टि भविष्य-केंद्रित होनी चाहिए, जिसमें भू-राजनीति के साथ आर्थिक प्रगति का भी संतुलन हो।

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FAQs (Hindi):

  1. भारत 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था कब तक बन सकता है?

  2. क्या चीन के बिना भारत आर्थिक महाशक्ति बन सकता है?

  3. भारत और चीन के व्यापार संबंध कितने मजबूत हैं?

  4. क्या भारत को चीन से अलग होकर आत्मनिर्भर बनना चाहिए?

  5. नीति विशेषज्ञ क्या कहते हैं भारत-चीन आर्थिक सहयोग पर?


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