भारत की रक्षा सफलता: निर्यात में ऐतिहासिक वृद्धि और आत्मनिर्भरता की ओर सशक्त कदम
भारत का रक्षा क्षेत्र अब केवल अपनी सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वैश्विक रक्षा निर्यातकों की कतार में भी अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा चुका है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत का रक्षा निर्यात ₹23,622 करोड़ के आंकड़े तक पहुंच गया, जोकि पिछले वर्ष के ₹21,083 करोड़ की तुलना में 12.04 प्रतिशत की बढ़ोतरी को दर्शाता है। यह सिर्फ आंकड़ा नहीं, बल्कि एक संकेत है उस परिवर्तन का, जो बीते एक दशक में भारत की रक्षा नीति, उत्पादन क्षमता और वैश्विक छवि में आया है।
आत्मनिर्भर भारत की दिशा में तेज़ी
भारत दशकों से अपनी रक्षा जरूरतों के लिए बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर रहा है। लेकिन पिछले 11 वर्षों में इस सोच में बदलाव आया है। 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' जैसी योजनाओं ने घरेलू रक्षा उत्पादन को नई दिशा और गति दी है। अब भारत सिर्फ खुद के लिए हथियार और उपकरण नहीं बना रहा, बल्कि उन्हें दुनिया भर के देशों को भी निर्यात कर रहा है।
आज भारत 80 से अधिक देशों को रक्षा उत्पाद निर्यात कर रहा है। इनमें अमेरिका, फ्रांस, फिलीपींस, इंडोनेशिया, ब्राजील जैसे विकसित और विकासशील देश शामिल हैं। वर्ष 2023-24 में आर्मेनिया भारत का एक प्रमुख ग्राहक बनकर उभरा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत की तकनीक, गुणवत्ता और विश्वसनीयता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिल रही है।
सार्वजनिक और निजी क्षेत्र का योगदान
इस निर्यात में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों की कंपनियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों (DPSUs) द्वारा वर्ष 2024-25 में ₹8,389 करोड़ का निर्यात किया गया, जो कि पिछले वर्ष के ₹5,874 करोड़ से 42.85 प्रतिशत अधिक है। वहीं, निजी क्षेत्र की कंपनियों ने ₹15,233 करोड़ का निर्यात किया, जो कि पिछले वर्ष के ₹15,209 करोड़ के मुकाबले थोड़ा अधिक है, लेकिन कुल मिलाकर एक स्थिर प्रगति दर्शाता है।
इस निरंतर विकास को ध्यान में रखते हुए रक्षा मंत्रालय ने वर्ष 2029 तक भारत के रक्षा निर्यात को ₹50,000 करोड़ तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
रक्षा उत्पादन में क्रांतिकारी वृद्धि
सिर्फ निर्यात ही नहीं, रक्षा क्षेत्र में कुल उत्पादन भी तेजी से बढ़ा है। वर्ष 2014-15 में भारत का कुल रक्षा उत्पादन ₹46,429 करोड़ था, जो 2023-24 में बढ़कर ₹1,27,265 करोड़ हो गया — यानी लगभग 174 प्रतिशत की वृद्धि। सरकार की दीर्घकालिक योजना है कि 2029 तक यह आंकड़ा ₹3 लाख करोड़ तक पहुंचाया जाए।
इस बढ़ती उत्पादन क्षमता का सबसे बड़ा आधार है "पॉजिटिव इंडिजेनाइजेशन लिस्ट", जिसके तहत सैकड़ों प्रकार के हथियारों, उपकरणों और उनके कलपुर्जों के आयात पर प्रतिबंध लगाया गया है। इसका उद्देश्य है देश के भीतर ही इनका निर्माण कराना और आयात पर निर्भरता को समाप्त करना।
नई तकनीक और नवाचार को बढ़ावा
इन नीतियों का सीधा असर भारतीय उद्योग जगत पर पड़ा है। देश की कई निजी और स्टार्टअप कंपनियां अब रक्षा क्षेत्र में कदम रख रही हैं। ड्रोन टेक्नोलॉजी, मिसाइल सिस्टम, आर्टिलरी, बख्तरबंद वाहन, कम्युनिकेशन उपकरण जैसी कई श्रेणियों में भारत नवाचार कर रहा है।
इससे न सिर्फ घरेलू ज़रूरतों की पूर्ति हो रही है, बल्कि वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धा भी बढ़ रही है। इस समय भारत उन गिने-चुने देशों की सूची में शामिल हो चुका है, जो अपने रक्षा उत्पादों को रणनीतिक साझेदारों को निर्यात कर रहे हैं।
निष्कर्ष
भारत का रक्षा क्षेत्र आज एक निर्णायक मोड़ पर है। तेज़ी से बढ़ती निर्यात दर, उत्पादन क्षमता में जबरदस्त वृद्धि और आत्मनिर्भरता की स्पष्ट दिशा यह दर्शाती है कि आने वाले वर्षों में भारत न केवल अपने रक्षा क्षेत्र को पूरी तरह स्वदेशी बनाएगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर एक मजबूत रक्षा निर्यातक भी बनकर उभरेगा।

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