अमेरिका-भारत व्यापार संबंध
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के साथ समझौते की संभावना का संकेत दिया है जिससे भारतीय बाजारों तक अधिक पहुँच मिलेगी । अमेरिका इंडोनेशिया के साथ हुए समझौते के अनुरूप भारत के लिए 19% से कम टैरिफ दर चाह रहा है, जबकि भारत वियतनाम से भी अधिक अनुकूल टैरिफ शर्तों की उम्मीद कर रहा है
Read this also👉https://www.thenukkadnews.in/2025/07/2026-apple-foldable-iphone-launch-price-features-hindi.html
क्या 'मेक इन इंडिया' के नियम वैश्विक सॉफ्टवेयर कंपनियों को भारत से दूर कर रहे हैं?
भारत का नीतियानुसार नीति सोच, नीति आयोग अमेरिका के साथ सेवा-पक्षीय व्यापार संधि में विशेष अतिरिक्त केंद्रित है; यह सूचना प्रौद्योगिकी, वित्तीय सेवाएँ, पेशेवर सेवाएँ और शिक्षा से संबंधित होना चाहिए क्षेत्र ज्यादातर स्व-शक्ति दर्शाता भारत के लिए महत्वपूर्ण है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि आधुनिक व्यापार समझौते अब केवल पारंपरिक व्यापार और विनिर्माण तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सेवाओं, नियामक प्रणालियों, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) और डिजिटल व्यापार सिद्धांतों को भी शामिल करते हैं
दोनों देशों के प्रमुख हितों और अपेक्षाओं की बातें करते हैं तो भारत अपने विशेषज्ञों के लिए बेहतर वीज़ा पहुंच का समर्थन कर रहा है, विशेष रूप से H-1B और L-1 श्रेणियों के तहत। इसके अलावा, भारत साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, दूरसंचार और डिज़ाइन सेवाओं जैसे उच्च-विकास वाले क्षेत्रों में अमेरिका से ठोस बाजार पहुँच प्रतिबद्धताएँ चाहता है
Read this also👉https://www.thenukkadnews.in/2025/07/nifty-it-wipro-infosys-tech-mahindra.html
वर्तमान व्यापार रणनीति में सेवा क्षेत्र का बढ़ता केंद्रीयकरण एक महत्वपूर्ण हिस्सा है नीति आयोग की सिफारिशों स्पष्ट रूप से भारत के सेवा क्षेत्र, विशेष रूप से आईटी और डिजिटल सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करती है, यह है यह ध्यान से काम लेने का प्रयास है भारत की बढ़ती डिजिटल क्षमता और कुशल श्रम, और यह जो बदलाव है उसमें प्रदर्शित किया जाता है कि भारत सेवा संबंधित बाधाओं, (जैसे की वीजा पहुंच, डिजिटल व्यापार नियम) को हटाने के लिए जोर देगा, जिससे वार्ता की जटिलता बढ़ जाएगी। यह भारत को एक मजबूत स्थिति में रखता है क्योंकि सेवाओं का निर्यात उसकी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है।
'मेक इन इंडिया' पहल: उद्देश्य और निहितार्थ
2014 में शुरू की गई 'मेक इन इंडिया' पहल का मुख्य लक्ष्य भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र में बदलना है
'मेक इन इंडिया' नीतियों का एक अनिवार्य हिस्सा गैर-टैरिफ बाधाएँ (NTBs) हैं। इनमें लाइसेंसिंग आवश्यकताएँ, गुणवत्ता मानक, तकनीकी नियम, आयात प्रतिबंध, सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी (SPS) उपाय, व्यापार में तकनीकी बाधाएँ (TBT) जैसे BIS प्रमाणन, सीमा शुल्क और प्रशासनिक देरी, और एंटी-डंपिंग शुल्क शामिल हैं
NTBs घरेलू उद्योगों के संरक्षण में सकारात्मक भूमिका निभाते हैं। वे भारतीय निर्माताओं को अत्यधिक विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने, स्थानीय उत्पादन इकाइयों को स्थापित करने के लिए वैश्विक कंपनियों को प्रोत्साहित करने और गुणवत्ता मानकों में सुधार करने में मदद करते हैं
'मेक इन इंडिया' का दोहरा प्रभाव, यानी संरक्षण बनाम प्रतिस्पर्धात्मकता, एक महत्वपूर्ण विचारणीय विषय है। 'मेक इन इंडिया' का उद्देश्य घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना और रोजगार सृजित करना है
भारत की ‘मेक इन इंडिया’ पहल शुरू से ही एक महत्वाकांक्षी योजना रही है, जिसका उद्देश्य देश को एक वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग और इनोवेशन हब बनाना है। यह पहल न सिर्फ हार्डवेयर या फैक्ट्री-निर्माण तक सीमित है, बल्कि इसमें सॉफ्टवेयर और डिजिटल तकनीकों को भी शामिल किया गया है। लेकिन अब सवाल उठ रहा है कि क्या कुछ नीतियाँ, विशेष रूप से स्थानीय सामग्री आवश्यकताएं (Local Content Requirements – LCRs) और डेटा स्थानीयकरण (Data Localization), इस सपने को हकीकत में बदलने की बजाय भारत को वैश्विक तकनीकी प्रतिस्पर्धा में पीछे ले जा रही हैं?
हाल ही में BSA (The Software Alliance), जो दुनिया की प्रमुख सॉफ्टवेयर कंपनियों का प्रतिनिधित्व करता है, ने भारत सरकार के सामने चिंता व्यक्त की है कि भारत की कुछ डिजिटल नीतियाँ न केवल विदेशी सॉफ्टवेयर कंपनियों को प्रभावित कर रही हैं, बल्कि भारत के ही नवाचार और सरकारी तकनीकी विकास को सीमित कर रही हैं।
सॉफ्टवेयर पर 'मेक इन इंडिया' के नियम – क्या यह उचित है?
BSA की दलील है कि जो नियम पारंपरिक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए बनाए गए थे, उन्हें सॉफ्टवेयर जैसी अमूर्त वस्तुओं पर लागू करना तर्कसंगत नहीं है। मसलन, LCR यानी स्थानीय सामग्री आवश्यकता, जहाँ सरकार चाहती है कि उपयोग होने वाला सॉफ्टवेयर या सेवा भारत में बनी हो, ये नियम उस प्रकृति को नहीं समझते जिसमें सॉफ्टवेयर बनता है।
आज का सॉफ्टवेयर दुनिया के कई हिस्सों में बैठी टीमों द्वारा मिलकर तैयार किया जाता है। एक एप्लिकेशन का इंटरफेस अमेरिका में बन सकता है, कोडिंग यूरोप में हो सकती है और क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर एशिया में हो सकता है। ऐसे में यह कहना कि सिर्फ वही सॉफ्टवेयर उपयोग होगा जो "भारत में बना" हो, वास्तविकता से दूर है और नवाचार को सीमित करता है।
डेटा स्थानीयकरण – सुरक्षा या रुकावट?
भारत सरकार का दूसरा बड़ा जोर है डेटा स्थानीयकरण पर। इसका तर्क है कि देश के नागरिकों का डेटा देश के अंदर ही संग्रहित और प्रोसेस होना चाहिए। यह बात सुरक्षा की दृष्टि से अहम लग सकती है, लेकिन इसके कई व्यावहारिक नुकसान हैं।
विदेशी कंपनियों को अपने डेटा प्रोसेसिंग के लिए भारत में अलग से सर्वर सेटअप करने पड़ते हैं, क्लाउड इन्फ्रास्ट्रक्चर दोहराना पड़ता है, और डुप्लीकेट सिक्योरिटी प्रोटोकॉल्स का पालन करना होता है। इससे लागत बढ़ती है, संचालन कठिन होता है, और कई कंपनियाँ भारत में अपने समाधान लाने से बचने लगती हैं।
इसी कारण से अमेरिका के कई व्यापारिक संगठनों ने भारत के इस डेटा लोकलाइजेशन रवैये पर सवाल उठाया है।
Read this also👉https://www.thenukkadnews.in/2025/07/lords-test-mohammed-siraj-ben-duckett-controversy.html
डिजिटल टैक्स, IT नियम और अन्य जटिलताएं
इसके अलावा भारत ने डिजिटल कंपनियों पर इक्वलाइजेशन लेवी जैसे टैक्स लगाए हैं, जिससे भारत में काम करने वाली विदेशी कंपनियों की लागत और बढ़ जाती है। साथ ही, IT नियम 2021 के तहत सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर अधिक निगरानी और जवाबदेही का दबाव है, जिससे उनकी स्वायत्तता प्रभावित होती है।
CCI द्वारा Google पर लगाए गए जुर्माने जैसे उदाहरणों से विदेशी निवेशकों के मन में यह धारणा बन रही है कि भारत का डिजिटल बाज़ार अब पहले जितना आसान और स्वागतयोग्य नहीं रहा।
आर्थिक असर क्या होगा?
अगर इन सभी बातों को एक साथ जोड़कर देखा जाए, तो स्थिति गंभीर दिखती है। एक रिपोर्ट के अनुसार, डेटा लोकलाइजेशन और कड़े डिजिटल नियमों के कारण:
-
कंपनियों की लागत 15 से 55% तक बढ़ सकती है।
-
भारत की GDP में 0.8% तक की गिरावट हो सकती है।
-
और घरेलू निवेश में भी गिरावट आ सकती है।
इसका सीधा असर भारत के उस डिजिटल मिशन पर पड़ेगा, जो 2030 तक ICT सेक्टर को ट्रिलियन डॉलर इंडस्ट्री बनाना चाहता है।
क्या समाधान है?
भारत सरकार के पास दो रास्ते हैं – या तो वह डिजिटल संप्रभुता के नाम पर सीमाएं बनाकर रखे और विदेशी कंपनियों को सीमित करे, या फिर संतुलन बनाकर ऐसा वातावरण तैयार करे जिसमें वैश्विक तकनीकी खिलाड़ी भारत में निवेश करने को प्रेरित हों।
इसके लिए जरूरी है:
-
सॉफ्टवेयर और डिजिटल सेवाओं के लिए वैयक्तिक नियम बनाए जाएं, जो उनकी अमूर्त प्रकृति को समझते हों।
-
डेटा लोकलाइजेशन पर स्पष्ट और व्यावहारिक दिशा-निर्देश हों।
-
और सबसे ज़रूरी, नीतियों में पारदर्शिता और स्थिरता हो ताकि विदेशी कंपनियों का भरोसा बना रहे।
निष्कर्ष
‘मेक इन इंडिया’ का सपना तभी पूरा होगा जब यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि समझदारी भरी नीति बनकर सामने आए। डिजिटल युग में सॉफ्टवेयर कंपनियों को भारत से जोड़ने के लिए जरूरी है कि सरकार फिजिकल नियमों को वर्चुअल दुनिया पर थोपने से बचे, और एक ऐसा माहौल बनाए जो नवाचार, प्रतिस्पर्धा और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा दे।
अगर भारत ऐसा कर पाया, तो वह न केवल अपनी आर्थिक शक्ति को मजबूत करेगा, बल्कि तकनीकी क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्वकर्ता बनने की दिशा में भी तेज़ी से आगे बढ़ेगा।
Read this also👉https://www.thenukkadnews.in/2025/07/bharat-america-vyapar-samjhota-tariff-2025.html



0 टिप्पणियाँ