EU के नए प्रतिबंध से भारत को बड़ा आर्थिक झटका, Nayara Energy विवाद ,गुजरात रिफाइनरी के एक्सपोर्ट पर लगा बैन

 यूरोपीय यूनियन के नए रिस्ट्रिक्शन से भारत को इकोनामिक झटका गुजरात रिफाइनरी एक्सपोर्ट बेन पर बड़ा विवाद

यूरोपीय यूनियन के नए रिस्ट्रिक्शन से भारत को इकोनामिक झटका गुजरात रिफाइनरी एक्सपोर्ट बेन पर बड़ा विवाद


दोस्तों आज के ग्लोबल इकोनामिक इकोसिस्टम में हर डिसीजंस का इंपैक्ट सिर्फ एक कंट्री तक ही सीमित नहीं रहता जबकि एक पावरफुल इंटरनल बॉडी जैसे कि यूरोपीय यूनियन किसी भी स्पेसिफिक प्रोडक्ट या फिर सेक्टर पर रिस्ट्रिक्शंस लगता है तो उसका ग्लोबल ट्रेड पर भी सीधा असर पड़ता है अब दोस्तों कुछ ऐसा ही भारत के साथ हुआ है उन्हें रिसेंटली गुजरात की एक मेजर रिफाइनरी के एक्सपोर्ट प्रोडक्ट पर बैन लगा दिया है जिससे कि भारत को एक सिग्निफिकेंट इकोनॉमिक्स सेटबैक मिला है यह फैसला जिओ पॉलिटिक्स से लेकर एनवायरमेंटल पॉलिसी तक के कई एंजिल्स में घेरा हुआ है जिसका भारत ने विरोध भी कर है यह सिर्फ दोस्तों एक ट्रेड बन नहीं है बल्कि एक रिफाइनरी से लेकर इंटरनेशनल रिलेशंस तक का एक ब्रॉडर इशू है जिसका असर रिफाइनरी वर्कर से लेकर आम आदमी तक हो रहा है।
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यूरोप का डिसीजन रिस्ट्रिक्शंस का असली मतलब क्या है


यूरोपीय यूनियन ने दोस्तों गुजरात की एक बड़ी रिफाइनरी के रिफाइंड ऑयल प्रोडक्ट और पेट्रोलियम बेस एक्सपोर्ट पर रोक लगाई है उनका कहना है कि रिफाइनरी का कुछ आउटपुट इनडायरेक्ट रूस से कनेक्ट क्रूड ऑयल के सोर्सेस से आता है जिससे यूक्रेन वार के बाद बन कर दिया गया था यूरोपीय यूनियन का यह स्टैंड है कि अगर किसी तीसरी कंट्री में रिफाइंड तेल बना भी रहा है लेकिन उसका सोर्स रसिया से है तो उसे इनडायरेक्ट बन कर जाएगा यह डिसीजन पॉलिटिकल तो है ही साथ ही में दोस्तों यूरोपियन यूनियन की अपनी एनर्जी डिपेंडेंसी को तोड़ने की पॉलिसी का हिस्सा भी बन गया ह


यूरोपीय यूनियन ने साफ-साफ बोला है कि वह अपने मेंबर नेशंस में किसी भी तरह के क्रूड ऑयल से निकले प्रोडक्ट को अलाव नहीं करेगा चाहे वह भारत चीन या फिर किसी भी रिफाइनरी से क्यों ना आए हो यह एक डिप्लोमेटिक चैलेंज है जिसमें की यूरोपीय यूनियन अपने रूल्स को स्ट्रिक्टली अप्लाई कर रहा है लेकिन इसका असली विक्टिम भारत का एक्सपोर्ट सेक्टर बन गया है गुजरात की रिफाइनरी जो कि पहले यूरोपीय यूनियन कंट्रीज कोल्ड फाइंड डीजल्स और जेट फ्यूल एक्सपोर्ट करती थी अब उसे पाइपलाइन को बंद देख रही है।

यूरोपीय यूनियन के नए रिस्ट्रिक्शन से भारत को इकोनामिक झटका गुजरात रिफाइनरी एक्सपोर्ट बेन पर बड़ा विवाद

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भारत का रिस्पांस सरकार ने विरोध क्यों किया ?


तो दोस्तों इस फैसले पर भारत सरकार ने अपना विरोध व्यक्त कर है भारत का कहना है कि यह एक्सपोर्ट रिफाइनरी पूरी तरीके से लीगल और ट्रांसपेरेंट तेल सोर्सिंग का पालन करती है गवर्नमेंट का यह भी कहना है कि अगर क्रूड ऑयल किसी भी रिफाइनरी में इलीगली इंपोर्ट कर गया है तो उसे रिफाइन करके बनाया गया प्रोडक्ट पर बैन लगना या फिर अनफेयर और वोट के ट्रेड नॉर्म्स के खिलाफ है भारत ने डिप्लोमेटिक लेवल पर ही अपना ऑब्जेक्शंस रजिस्टर्ड कराया है जिसमें की कहना है कि यूरोपीय यूनियन का या डिसीजन विल इट ट्रेड्स टाइप को हम करेगा और डेवलपिंग कंट्रीज की इकोनामिक ग्रोथ को रोकने का काम करेगा।


सरकार ने यह भी कहा है कि भारत किसी भी सैंक्शंस का ऑफीशियली पार्ट नहीं है और उसके पास यह अधिकार होना चाहिए कि वह अपने ट्रेड रिलेशंस को सवेरे जिन तरीके से मैनेज करें यह विरोध सिर्फ एक रिफाइनरी या फिर एक डील तक ही सीमित नहीं है बल्कि एक ब्रॉडर मैसेज भी है कि डेवलपिंग इकोनामिक को अपने रिलीजन और ग्लोबल इंटरेस्ट के लिए खड़े रहना चाहिए।

गुजरात रिफाइनरी पर इसका असर एक्सपोर्ट बंद होने का ग्राउंड लेवल इंपैक्ट 


दोस्तों गुजरात की जी रिफाइनरी पर यह रिस्ट्रिक्शंस लगा है वह भारत की सबसे बड़ी और एडवांस रिफाईनरीज में से एक है यह रिफाइनरी हर साल लाखों बैरल रिफाइंड फ्यूल यूरोपीय यूनियन और एशिया के मार्केट में एक्सपोर्ट करती थी अब जब एक्सपोर्ट पर रोक लगी है रिफाइनरी की प्रोडक्शन कैपेसिटी पर काफी ज्यादा स्ट्रेस ए पड़ा है स्टोरेज ओवरफ्लो हो रहा है पाइपलाइन सप्लाई चैन डिस्टर्ब हो रही है और नए खरीदारों के लिए एग्रेसिवली नेगोशिएट करना पड़ रहा है।



रिफाइनरी का कामगार ठेकेदार लॉजिस्टिक्स प्रोवाइड्स ऑल शिपिंग कंपनी इस ए सब इस इंपैक्ट को फुल कर रहे हैं उन्हें नए ऑर्डर मिलने में काफी ज्यादा देर हो रही है और इन्वेंटरी मैनेजमेंट का प्रेशर काफी ज्यादा बढ़ गया है यह रिफाइनरी सिर्फ एक्सपोर्ट का सोर्स ही नहीं थी बल्कि गुजरात और पूरे भारत के फ्यूल इंफ्रास्ट्रक्चर का एक कृष्ण पिलर भी थी अगर यह डिस्क्रिप्शन से लंबा चलता रहा तो रिफाइनरी कोई है तो प्रोडक्शन काम करना पड़ेगा या फिर नए को मार्जिन वायरस के साथी अपना काम करना पड़ेगा दोनों ही केसेस में इकोनॉमिक्स को लॉस होने वाला है।

बेनिफिट कॉस्ट एनालिसिस क्या भारत ने सच में नुकसान उठाया है 


अगर हम उक इस डिसीजन का बेनिफिट कॉस्ट एनालिसिस करें तो यह साफ दिखता है कि भारत के लिए इसका कॉस्ट काफी ज्यादा है सबसे पहले नुकसान है एक्सपोर्ट रेवेन्यू का गुजरात रिफाइनरी जो की हाई वॉल्यूम हाय मार्जिन प्रोडक्ट यूरोपीय यूनियन को भेजती थी उसका सोर्स अब पूरी ट्रेनिंग कैसे खत्म हो गया है इसका मतलब है कि करीब 8000 से 10000 करोड रुपए तक का एनुअल एक्सपोर्ट लॉस में है अगर अल्टरनेटिव मार्केट जल्दी नहीं मिले तो।

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दूसरा सबसे बड़ा लॉस है कि भारत की इंटरनेशनल रेपुटेशन का अगर यूरोपीय यूनियन जैसे बॉडीज भारत की रिफाइनरी प्रोडक्ट को बंद लिस्ट में डालने लगे तो दूसरे वेस्टर्न भी क्वेश्चंस हो जाएंगे या लॉन्ग समय में ट्रेड ट्रस्ट को काफी करता है इसके अलावा जब भी लॉस कांटेक्ट कैंसिलेशन और डोमेस्टिक फ्यूल प्राइसिंग पर भी स्ट्रेस पर सकता है अगर रिफाइनरी को अपना क्वेश्चन निकालने के लिए अल्टरनेटिव बायर्स नहीं मिले।


यूरोपीय यूनियन के नए रिस्ट्रिक्शन से भारत को इकोनामिक झटका गुजरात रिफाइनरी एक्सपोर्ट बेन पर बड़ा विवाद


बेनिफिट्स की बात करें तो कुछ लोग कह रहे हैं कि यह एक मौका भी है भारत अपने रिफाइंड प्रोडक्ट्स को ने बायर्स ढूंढ सकता है जैसे कि अफ्रीका साउथ ईस्ट एशिया और लेटिना अमेरिका के डेवलपिंग नेशंस यह डायवर्सिफिकेशन का समय है जहां पर इंडिया को यूरोपीय यूनियन पर डिपेंडेंसी काम करके नेट ट्रेड पार्टनर बनने चाहिए लेकिन दोस्तों यह प्रक्रिया काफी ज्यादा समय कंजूमिंग और काफी ज्यादा रिस्की भी है जिसमें की छोटे समय में नुकसान काफी ज्यादा हो सकता है।


निष्कर्ष 


यूरोपीय यूनियन का एक नए सैंक्शंस और एक्सपोर्ट बैंक सिर्फ भारत के लिए वेक अप कॉल नहीं है बल्कि पूरी ग्लोबल साउथ के लिए एक वार्निंग है आज जब जियो पोलिटिकल पॉलिसीज और एनवायरमेंट वेस्ट रिस्ट्रिक्शंस बढ़ते जा रहे हैं तो डेवलपिंग नेशंस को अपने इकोनामिक इंटरेस्ट को काफी ज्यादा मजबूती से रिप्रेजेंट करना होगा भारत ने इस मुद्दे पर जो विरोध व्यक्त किया है वह काफी ज्यादा जरूरी है लेकिन दोस्तों अब उसे अपने ट्रेड इकोसिस्टम को और रेसिलियंस बनाने की जरूरत है गुजरात रिफाइनरी का इंपैक्ट शॉर्ट टर्म मे बड़ा है लेकिन अगर हमने बायर्स बैटल लॉजिस्टिक्स और स्ट्रैटेजिक डिप्लोमेसी का इस्तेमाल करें तो यह ऑपच्यरुनिटीज भी बन सकती है।

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