अमेरिका इतना बड़ा है कि उसे खारिज नहीं किया जा सकता: ट्रंप के 50% टैरिफ से भारत के 70% निर्यात को खतरा, ICRIER ने दी चेतावनी
अमेरिका ने 50 % टैरिफ भारत से सामान जाने पर और इससे हमारे सारे एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट पे खतरा हो सकता है |दुनिया के सबसे बड़े अर्थव्यवस्थाओं में से एक अमेरिका का वैश्विक व्यापार पर प्रभाव इतना ज्यादा है कि उपयोग को नजरअंदाज करना लगभग असंभव है। चाहे वह निर्यात का मामला हो, या प्रौद्योगिकी का, या निवेश का - अमेरिका की नीतियों का असर हर देश पर पड़ता है। अब जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फिर से एक आक्रामक व्यापार रुख की बात की है और 50% टैरिफ लगाने का प्रस्ताव रखा है, तो इसका प्रभाव दुनिया भर में महसूस किया जा रहा है। क्या नीति का सीधा प्रभाव भारत के निर्यात पर पड़ सकता है, जिसका आज के समय में एक बड़ा हिस्सा अमेरिकी बाजार में आता है। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (आईसीआरआईईआर) ने भी चेतावनी दी है कि अगर ऐसा होता है तो भारत का 70% निर्यात अमेरिकी बाजार में महंगा हो जाएगा, जो उनकी मांग को सीधे हिट करेगा।
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भारत-अमेरिका व्यापार संबंध का महत्व
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संबंध हमेशा से एक मजबूत स्तंभ रहा है। भारत अमेरिका को सॉफ्टवेयर सेवाएं, कपड़ा, रत्न और आभूषण, फार्मा उत्पाद, इंजीनियरिंग सामान और रसायन निर्यात करता है। इनमे से बहुत सारे सेक्टर अमेरिकी बाज़ार पर बहुत अधिक निर्भर हैं। अगर अमेरिका अपने आयात शुल्क में इतना अधिक वृद्धि कर दे, तो भारतीय उत्पादों के लिए वहां के स्थानीय उत्पादों की तुलना में काफी महँगे हो जायेंगे। इसका मतलब यह है कि खरीदारों के सस्ते विकल्प की तरफ बदलाव हो सकता है, जो भारत के निर्यातकों के लिए एक बड़ा झटका होगा।
ट्रम्प की व्यापार नीति और संरक्षणवाद का असर
डोनाल्ड ट्रंप का 50% टैरिफ प्रस्ताव एक स्पष्ट संकेत है संरक्षणवाद की तरफ, जहां एक देश अपने घरेलू उद्योगों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए आयात पर उच्च कर लगाता है। ट्रम्प के पहले कार्यकाल में भी स्टील, एल्युमीनियम और कुछ अन्य उत्पादों पर टैरिफ लगाया गया, जिसकी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में गड़बड़ी आई थी। अगर बोर्ड भर में 50% टैरिफ लगता है, तो इसका मतलब यह है कि भारत के विनिर्मित सामान, प्रसंस्कृत खाद्य, वस्त्र, और यहां तक कि आईटी हार्डवेयर निर्यात की अमेरिका में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त काफी कम हो जाएगी। ये स्थिति उन व्यवसायों के लिए और चुनौतीपूर्ण होगी जो यूएस मार्केट के लिए टेलर-मेड प्रोडक्शन करते हैं।
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आईसीआरआईईआर की चेतना और उसका अर्थ
ICRIER का कहना है कि भारत के निर्यात में 70% से ज्यादा हिसा जैसे उत्पादों का है जो टैरिफ से सीधे प्रभाव डालेंगे। ये चेतावनी सिर्फ एक नंबर नहीं है, बल्कि एक सिग्नल है कि भारत को अपनी निर्यात रणनीतियों में विविधीकरण लाना होगा। अगर अमेरिकी बाजार में प्रवेश महंगा हो जाता है, तो निर्यातकों को यूरोप, मध्य पूर्व, अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे बाजारों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। लेकिन ये रातोरात बदलाव संभव नहीं है क्योंकि नए बाजार में प्रवेश की प्रक्रिया, समय, लागत और नियामक चुनौतियां लेकर आता है।
भारत के लिए चुनौतियाँ
भारत की विनिर्माण और निर्यात संरचना काफी हद तक लागत प्रतिस्पर्धात्मकता पर निर्भर है। अगर टैरिफ के चलते अमेरिका में कीमतें ऊंची हो गईं, तो मुझसे मांग गिराना लगभग तय है। गारमेंट और टेक्सटाइल सेक्टर जैसे उद्योग, जो पहले से ही वियतनाम और बांग्लादेश से प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहे हैं, उनके लिए ये एक डबल झटका होगा। फार्मा उद्योग के लिए भी अमेरिका एक प्रमुख बाजार है। उच्च टैरिफ का मतलब वहां के वितरक और अस्पताल भारतीय दवाओं के विकल्प तलाशेंगे। इंजीनियरिंग गुड्स और ऑटो कंपोनेंट्स के सेक्टर पर भी सीधा असर पड़ेगा, जो लाखों लोगों के रोजगार से जुड़ा है।
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर असर
आज के समय में वैश्विक व्यापार एक इंटरकनेक्टेड नेटवर्क बन चुका है। अगर अमेरिका में आयात पर इतना अधिक टैरिफ लगता है, तो केवल निर्यातक ही नहीं, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला भी बाधित हो जाएगी। उदाहरण के लिए, अगर एक भारतीय कंपनी यूएस के लिए ऑटो कंपोनेंट्स बनाती है, तो उसके पार्ट्स किसी और देश के फाइनल असेंबल किए गए वाहनों में लगते हैं जो यूएस मार्केट में जाते हैं। उच्च टैरिफ की वजह से पूरी श्रृंखला परेशान हो सकती है। ये प्रभाव सिर्फ व्यापार संख्या पर नहीं, बाल्की विनिर्माण नौकरियां और औद्योगिक उत्पादन पर भी पड़ेगा।
भारत की संभावना रणनीति
अगर ऐसी स्थिति होती है तो भारत के पास दो प्रमुख विकल्प होंगे। पहला, अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता करके कुछ उत्पाद श्रेणियों को टैरिफ सूची से बाहर करना। दूसरा, अपने निर्यात का भौगोलिक विविधीकरण बढ़ाना। सरकार को मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर फास्ट-ट्रैक में काम करना होगा, ताकी यूरोप, खाड़ी देशों और आसियान क्षेत्र में भारतीय सामान शुल्क-मुक्त या कम शुल्क में प्रवेश ले सकें। इसके साथ ही निर्यातकों को उत्पाद की गुणवत्ता, ब्रांडिंग और इनोवेशन पर ज्यादा ध्यान देना होगा, ताकि अधिक कीमत के कारण खरीदारों को आकर्षित किया जा सके।
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घरेलू बाज़ार की भूमिका
एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अगर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में चुनौतियां बढ़ती हैं, तो घरेलू मांग को मजबूत बनाना होगा। भारत के पास एक बड़ा उपभोक्ता आधार है, जिसकी पूरी क्षमता का अभी उपयोग नहीं हुआ है। अगर विनिर्माण उद्योग अपनी घरेलू बिक्री बढ़ाता है, तो निर्यात में गिरावट का प्रभाव थोड़ा प्रबंधन हो सकता है। लेकिन इसके लिए स्थानीय क्रय शक्ति, बुनियादी ढांचे और लॉजिस्टिक्स में सुधार करना होगा।
राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव
व्यापार नीतियों का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव जब तक सीमित नहीं होता, तब तक ये राजनीतिक संबंधों को भी प्रभावित करता है। अगर टैरिफ के चलते भारत-अमेरिका व्यापार में टकराव बढ़ता है, तो इसका असर रक्षा सहयोग, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और निवेश प्रवाह पर भी पड़ सकता है। इसलिए विदेश नीति और व्यापार नीति को सिंक में रखना जरूरी है। भारत को कूटनीतिक रूप से यह सुनिश्चित करना होगा कि अमेरिका के साथ संबंध काफी सकारात्मक बने रहें, चाहे व्यापार वार्ता कठिन हो, हाय क्यों ना हो।
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निष्कर्ष:
अमेरिका एक ऐसा बाजार है जो किसी भी निर्यातक देश के लिए नजरअंदाज करना मुश्किल है। डोनाल्ड ट्रंप ने 50% टैरिफ का प्रस्ताव रखा, भारत के लिए एक गंभीर चुनौती बन सकती है, जिसका 70% निर्यात पर सीधा असर पड़ेगा। आईसीआरआईईआर की चेतावनी एक चेतावनी है कि भारत को अपनी निर्यात रणनीति में विविधता लानी होगी, घरेलू बाजार को मजबूत करना होगा और व्यापार वार्ता में सक्रिय भूमिका निभानी होगी। संरक्षणवादी नीतियां अल्पकालिक में एक देश के घरेलू उत्पादकों को लाभ दे सकती हैं, लेकिन दीर्घकालिक में ये वैश्विक व्यापार और सहयोग के लिए हानिकारक होती हैं। भारत के लिए ये समय है कि वो अपने ट्रेड इकोसिस्टम को ज्यादा लचीला बनाए, ताकि कोई भी वैश्विक नीति को झटका दे सके, उसकी आर्थिक वृद्धि पटरी से न उतरे।
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FAQ
Q1. ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ क्यों लगाया है?
👉 ट्रंप का कहना है कि अमेरिकी बाजार की सुरक्षा और घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने के लिए यह कदम जरूरी है।
Q2. इस टैरिफ से भारत के निर्यात पर कितना असर होगा?
👉 ICRIER के अनुसार, भारत के लगभग 70% निर्यात पर इसका सीधा खतरा है।
Q3. ICRIER ने क्या चेतावनी दी है?
👉 ICRIER ने कहा कि अमेरिका इतना बड़ा व्यापारिक साझेदार है कि उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
Q4. भारत किन सेक्टरों पर सबसे ज्यादा असर देख सकता है?
👉 टेक्सटाइल, फार्मा, स्टील और आईटी सर्विसेज पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ सकता है।
Q5. क्या भारत और अमेरिका के बीच बातचीत की संभावना है?
👉 हाँ, व्यापारिक रिश्ते बनाए रखने के लिए उच्च स्तरीय बातचीत की संभावना बनी हुई है।




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