मोदी की चीन यात्रा: ट्रंप के टैरिफ वॉर ने बढ़ाई भारत-चीन नजदीकी, अमेरिका की बढ़ी चिंता!

प्रधानमंत्री मोदी (एससीओ) शिखर सम्मेलन के लिए चीन जा सकते हैं, सात वर्षों में यह उनकी पहली यात्रा होगी।

प्रधानमंत्री मोदी (एससीओ) शिखर सम्मेलन के लिए चीन जा सकते हैं, सात वर्षों में यह उनकी पहली यात्रा होगी।

नई दिल्ली:
सात साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संभावित रूप से शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) शिखर सम्मेलन के लिए चीन यात्रा पर जा सकते हैं — लेकिन यह सिर्फ एक डिप्लोमैटिक दौरा नहीं, बल्कि विश्व राजनीति के समीकरण बदलने वाला कदम माना जा रहा है।

जहां एक ओर दुनिया भारत-चीन सीमा विवाद और गलवान घाटी की तल्ख यादों को भूली नहीं है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका और चीन के बीच छिड़ा टैरिफ वॉर धीरे-धीरे भारत-चीन को एक बार फिर करीब लाने का मंच तैयार कर चुका है।

नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी में होने वाले कॉरपोरेशन आर्गेनाइजेशन के हेड ऑफ़ स्टेट सबमिट में शामिल होंगे जो कि अगस्त के लास्ट से सितंबर तक चलेगा यह उनकी चीन यात्रा 2018 के बाद पहली बार होगी वही वक्त जब उन्होंने इनफॉर्मल सबमिट अटेंड किया था। यह चाइना में जाना बहुत जरूरी है क्या कि पिछले कुछ सालों से रिलेशन चीन की दिन प्रतिदिन घटती जा रही है।

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एससीओ क्या है और इसका भूराजनीतिक महत्व

शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ एक क्षेत्रीय राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है जिसमें भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान जैसे देश शामिल हैं। ये संगठन का उद्देश्य क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाना है, आतंकवाद और उग्रवाद के खिलाफ काम करना है, और आर्थिक कनेक्टिविटी बढ़ाना है। मोदी का इस सम्मेलन में शामिल होना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि भारत और चीन दोनों ही एससीओ के प्रमुख हितधारक हैं। दोनों देशों के बीच की चिंताएं चाहे एलएसी पर हों या आर्थिक प्रतिस्पर्धा में, ऐसी बैठकें दोनों तरफ को एक राजनयिक मंच देती हैं।


क्या ये यात्रा भारत-चिन संबंधों में नई शुरुआत हो सकती है?

जब से गलवान घाटना हुई है 2020 में, तब से भारत और चीन के बीच संबंध ठीक नहीं रह रहे हैं। कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर बातचीत होती रही है लेकिन भरोसा वापस बनाना उतना ही मुश्किल है जितना हिमालय में गर्म हवा का गुजरना। ऐसे में अगर मोदी चीन जाते हैं तो ये दोनों देशों के बीच एक प्रतीकात्मक पिघलना का संकेत दे सकता है। हालांकी ये भी सच है कि डोनो तरफ का भरोसे का स्तर अभी भी कम है। पर ये यात्रा शायद एक पहला कदम हो जाये सतर्क पुनः जुड़ाव की ओर।

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🇮🇳🇨🇳 भारत-चीन की नजदीकी: मजबूरी या रणनीति?

प्रधानमंत्री मोदी की संभावित बीजिंग यात्रा को महज कूटनीतिक औपचारिकता मानना गलती होगी। इसमें कई गहरे संकेत छिपे हैं:

  • SCO जैसे मंच पर भारत की भागीदारी, चीन की छवि सुधारने का मौका देती है।

  • भारत को रूस से सस्ते तेल, चीन से सस्ते इलेक्ट्रॉनिक्स और अमेरिका से टेक्नोलॉजी चाहिए — लेकिन अब संतुलन बदलता दिख रहा है।

  • भारत अपनी मेक इन इंडिया नीति के तहत चीन के निवेश को फिर से आंशिक रूप से स्वीकार कर सकता है।


मोदी की यात्रा का आर्थिक संदर्भ

क्या यात्रा का एक आर्थिक पहलू भी है जो छुपा हुआ नहीं है। भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंध अब भी कई मायनों में मजबूत हैं, लेकिन भारत आज मेड इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसी पहल से वैश्विक मंच पर खुद को पुनर्स्थापित कर रहा है। वहीं चीन अपनी आर्थिक मंदी और अमेरिका के साथ चल रही व्यापार युद्ध के बीच नई साझेदारियां ढूंढ रहा है। ऐसे में मोदी का जाना और चीन के शीर्ष नेतृत्व के साथ बात करना एक आर्थिक पुनर्गठन का संकेत भी हो सकता है। ये दोनो देश अब आपसी हित के आधार पर एक नए बिजनेस ढांचे की तरफ बढ़ने की कोशिश कर सकते हैं।


चीन में मोदी की यात्रा

मोदी की ये यात्रा सिर्फ एससीओ मीटिंग के लिए नहीं होगी बल्कि ये चीन के लिए भी एक राजनीतिक संदेश होगा। जब भारत के पीएम 7 साल बाद चीन के दरवाजे पर दस्तक देते हैं, तो दुनिया के लिए ये एक डिप्लोमैटिक हेडलाइन बन जाता है। ये उन लोगों के लिए भी एक मजबूत संकेत है जो समझते हैं कि भारत अब सिर्फ एक दक्षिण एशियाई शक्ति है लेकिन एक वैश्विक शक्ति बन चुका है जो अपनी विदेश नीति को व्यावहारिक और रणनीतिक रूप से संभालता है।


क्या शी जिनपिंग से भी होगी बात?

सबसे बड़ा सवाल ये भी है कि क्या मोदी और शी जिनपिंग के बीच कोई द्विपक्षीय मुलाकात होगी? हालांकी ने आधिकारिक पुष्टि की है कि अब तक नहीं आया है, लेकिन सूत्र ये कह रहे हैं कि डोनो नेता एक "पुल-एसाइड" मीटिंग में बात कर सकते हैं। ये बैठक अगर होती है तो एलएसी पर जमीनी स्थिति से लेकर व्यापार और कनेक्टिविटी परियोजनाओं तक हर मुद्दे पर बात हो सकती है। लेकिन भारत का ये भी कहना है कि "व्यापार हमेशा की तरह" तब तक नहीं हो सकता जब तक सीमा पर शांति ना हो।

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पाकिस्तान का रोल और भारत का रुख

एससीओ में पाकिस्तान भी एक सदस्य है और हर साल इस बार भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति सम्मेलन में शामिल होंगे। भारत का इसपर एक स्पष्ट रुख है कि वह किसी भी बहुपक्षीय मंच पर पाकिस्तान से पीठ नहीं मोड़ सकता लेकिन किसी द्विपक्षीय पहल का समर्थन भी नहीं करता जब तक सीमा पार आतंकवाद बंद नहीं होता। मोदी की चीन यात्रा में भी पाकिस्तान की मौजूदगी को लेकर रणनीतिक सावधानी बरतनी होगी। वहीं भारत ये भी सुनिश्चित करेगा कि पाकिस्तान किसी भी तरह से एससीओ का दुरुपयोग न करे और अपनी भारत विरोधी बयानबाजी करे।


प्रधानमंत्री मोदी (एससीओ) शिखर सम्मेलन के लिए चीन जा सकते हैं, सात वर्षों में यह उनकी पहली यात्रा होगी।


अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया और अमेरिका का परिप्रेक्ष्य

जब भारत-चीन के बीच कभी भी सगाई होती है, तो पश्चिम, खास कर अमेरिका, उस पर नजर रखता है। आज जब अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ा हुआ है, तो भारत का चीन से जुड़ना अमेरिका को मिले-जुले संकेत दे सकता है। लेकिन भारत की विदेश नीति का आधार "रणनीतिक स्वायत्तता" है, जिसका मतलब है कि भारत किसी भी देश के दबाव में आके निर्णय नहीं लेता। एससीओ बैठक में शामिल होना और चीन यात्रा करना भी इसी आत्मविश्वासी विदेश नीति का हिस्सा है।


सोशल मीडिया और जनता का रिएक्शन

देश के अंदर भी इस यात्रा को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं हैं। एक तरफ लोग इसे एक मजबूत कूटनीतिक कदम मान रहे हैं जहां भारत अपनी उपस्थिति दिखाएगा, तो दूसरे तरफ कुछ लोग आलोचना कर रहे हैं कि गलवान के बाद अभी तक उचित न्याय नहीं मिला और मोदी को चीन नहीं जाना चाहिए। लेकिन ये समझना जरूरी है कि कूटनीति सिर्फ गुस्से से नहीं चलती, उसमें धैर्य, परिपक्वता और दीर्घकालिक सोच काफी महत्वपूर्ण होती है। सोशल मीडिया पर हैशटैग जैसे #ModiInChina और #SCO2025 ट्रेंड कर रहे हैं जो जनता के हित को दर्शाता है।


एससीओ में भारत की भविष्य की भूमिका

आने वाले दिनों में भारत का रोल एससीओ में और भी ज्यादा प्रभावशाली बन सकता है। बुनियादी ढांचे, साइबर सुरक्षा, आतंकवाद का मुकाबला, और स्वास्थ्य क्षेत्र जैसे क्षेत्रों में भारत अपनी क्षमताओं और समाधानों के साथ एससीओ में एक विश्व नेता बन कर उभर सकता है। मोदी की ये यात्रा सभी आयामों को एक्सप्लोर करने का एक अवसर है। भारत का फोकस क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के साथ-साथ वैश्विक सहयोग पर भी रहेगा।


निश्कर्ष:

अंत में, ये कहना गलत नहीं होगा कि मोदी की संभावना चीन यात्रा एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है दक्षिण एशिया के लिए। ये यात्रा ना सिर्फ एससीओ मंच पर भारत की उपस्थिति को मजबूत करेगी, बल्कि भारत-चीन संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत भी हो सकती है - अगर सब कुछ योजना के मुताबिक चला। ये भी याद रखना होगा कि ये कोई समझौता या शांति संधि नहीं, बल्कि एक कूटनीतिक अभिव्यक्ति है कि भारत बातचीत के लिए तैयार है लेकिन अपने राष्ट्रीय हित और संप्रभुता के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगा। ऐसे में, दुनिया की नज़र इस यात्रा पर बनी रहेगी और भारतीय जनता भी उम्मीद रखेगी कि ये कदम एक सकारात्मक और स्थिर दक्षिण एशिया के लिए एक नया रास्ता बनायेगा।

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FAQs :

Q1. क्या मोदी की चीन यात्रा की पुष्टि हो गई है?
अभी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन उच्च स्तर पर इसकी तैयारी चल रही है।

Q2. SCO शिखर सम्मेलन क्या है?
यह एक बहुपक्षीय संगठन है जिसमें भारत, चीन, रूस और मध्य एशिया के देश शामिल हैं।

Q3. क्या यह यात्रा भारत-चीन रिश्तों में सुधार का संकेत है?
यह यात्रा दोनों देशों के बीच संबंधों को पुनर्संतुलित करने का प्रयास हो सकती है।

Q4. अमेरिका इस पर कैसे प्रतिक्रिया देगा?
अमेरिका इससे असहज हो सकता है क्योंकि वह भारत को एक रणनीतिक सहयोगी मानता है।

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