🇮🇳 मोदी सरकार की "टीम इंडिया" डिप्लोमेसी: विरोधियों के साथ मिलकर रचा गया नया कूटनीतिक अध्याय

 

🇮🇳 मोदी सरकार की "टीम इंडिया" डिप्लोमेसी: विरोधियों के साथ मिलकर रचा गया नया कूटनीतिक अध्याय




जब मोदी सरकार ने 59 नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल विदेश भेजा—जिसमें कांग्रेस, एआईएमआईएम, डीएमके, एनसीपी, शिवसेना (उद्धव गुट), और सीपीएम समेत लगभग सभी बड़े दल के नेता शामिल थे—तो राजनीति में उबाल आ गया।

उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने इसे ‘बरात’ कहा, कांग्रेस ने खुद अपने नेता शशि थरूर को दिखा दिया कि वे बीजेपी के “सुपर प्रवक्ता” जैसे व्यवहार कर रहे हैं, यहां तक कि बीजेपी के भी कुछ समर्थक यह देखकर चौंक गए कि सरकार ने अपने कट्टर विरोधी को विदेश

लेकिन इस सतही विवाद के पीछे की है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीतिक चतुराई और दूरदर्शी कूटनीति जो समय के साथ और गहराई से काम करती है।


🔍 यह कदम क्यों है एक मास्टरस्ट्रोक? जानिए 5 प्रमुख कारण:

1️⃣ राष्ट्रीय एकता का दुर्लभ उदाहरण

इस प्रतिनिधिमंडल में 32 देशों और यूरोपीय यूनियन मुख्यालय की यात्रा करने वाले नेताओं में शशि थरूर (कांग्रेस), असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM), कनिमोळी (DMK), सुप्रिया सुले (NCP), प्रियंका चतुर्वेदी (उद्धव सेना) और जॉन ब्रिटास (CPM) जैसे विविध विचारधारा वाले नेता शामिल हैं।

यह पिछले कई दशकों में केंद्र और विपक्ष के बीच सबसे मजबूत द्विदलीय सहयोग (bipartisan unity) का उदाहरण है। 1965 के भारत-पाक युद्ध या पोखरण परमाणु परीक्षण के समय जो एकजुटता दिखी थी, उसकी याद ताजा हो गई है।

2️⃣ सरकार और विपक्ष के बीच संवाद की नई शुरुआत

यह पहल केवल कूटनीतिक ही नहीं, बल्कि संसदीय रणनीति (floor management) में भी सहूलियत पैदा करती है। जब संवाद के दरवाजे खुले रहते हैं, तो संसद में गतिरोध की संभावना घटती है।

3️⃣ विपक्ष के लिए राष्ट्रवाद का नया मंच

भारत के दुश्मनों और आतंकवाद के खिलाफ एकजुट स्वर से उन विपक्षी नेताओं की छवि सुधरती है जिन्हें अक्सर राष्ट्रविरोधी रुख अपनाने का आरोप झेलना पड़ता है। इससे उन्हें जनता के बीच नई विश्वसनीयता मिलती है — और राजनीति में यह केवल छवि नहीं, बल्कि वोट भी दिला सकती है।

4️⃣ भारत के पास अब बहु-पार्टी प्रवक्ताओं की एक वैश्विक टीम

अब भारत के पास ऐसे प्रतिभाशाली वक्ता हैं जो केवल अपनी पार्टी नहीं, बल्कि देश के लिए वैश्विक मंचों पर बोलने को तैयार हैं। जैसे शशि थरूर या असदुद्दीन ओवैसी की भाषण कला अब भारत की ओर से भी काम कर रही है। यह देश की डिप्लोमैटिक बेंच स्ट्रेंथ को और मजबूत करता है।

5️⃣ विरोधियों को किया गया अप्रासंगिक (Irrelevant)

इस एक पहल से मोदी सरकार ने कांग्रेस के राहुल गांधी, उद्धव ठाकरे और वामपंथी धड़ों की कुंठित राजनीति को दरकिनार कर दिया है। जब उनकी ही पार्टी के नेता विदेशों में भारत का समर्थन करते हैं, तो उनके "भारत विरोधी" बयानों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्वसनीयता कमजोर हो जाती है।


🔁 राजनीति की ध्रुवीयता में बदलाव

यह पूरा अभियान भारतीय राजनीति की मध्य धारा को ‘राष्ट्रवादी’ दिशा में खींचता है, और ‘ग्लोबलिस्ट लेफ्ट’ विचारधारा को किनारे करता है। सोशल मीडिया पर लोग भ्रम में हैं कि अब किसका समर्थन करें — क्योंकि "टीमें" बदल गई हैं और "पक्ष" धुंधले हो गए हैं


🧭 निष्कर्ष:

प्रधानमंत्री मोदी की यह पहल एक बहुआयामी कूटनीतिक रणनीति है — जिससे न केवल भारत को वैश्विक मंच पर एक मजबूत आवाज मिलती है, बल्कि देश के भीतर भी राजनीति में नया संतुलन बनता है।

यह केवल विदेश नीति नहीं, बल्कि घरेलू राजनीति और जनता के मानस पर दूरगामी असर डालने वाला कदम है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ