ईरान पर इज़रायल का हमला तेज, खमेनेई के सामने अब आर-पार की लड़ाई: जानिए क्या है उनके पास विकल्प?
McKinsey की भू-राजनीतिक रिपोर्ट के अनुसार, यह एक ऐसा परिवर्तन है जहाँ ईरान के सर्वोच्च नेता को या तो युद्ध शुरू करना होगा या सब कुछ खो देना होगा।
इज़रायल ने खोला बड़ा मोर्चा: आसमान से बरस रही तबाही
ईरान के आकाश में इज़रायल की वायुसेना को पूरी तरह से खुली छूट मिल चुकी है। बीते हफ्तों में उसने ईरान के परमाणु ठिकानों, सैन्य कमांड सेंटर्स और प्रमुख जनरलों को निशाना बनाकर बड़ी सफलता हासिल की है।
इज़रायल के रक्षा मंत्री इसराइल कत्ज़ ने भी स्पष्ट रूप से धमकी दी:
⚖️ खमेनेई के पास क्या हैं विकल्प?
अब 86 वर्षीय अली खमेनेई दो रास्तों के चौराहे पर खड़े हैं:
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जवाबी हमला कर के युद्ध को और भड़काना, जिससे इज़रायल की बमबारी और भी ज़्यादा तबाही मचा सकती है।
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राजनयिक समाधान की ओर बढ़ना, लेकिन इसके लिए उन्हें संभवतः अपना परमाणु कार्यक्रम त्यागना पड़ सकता है – जो वर्षों से ईरानी नीति की रीढ़ रहा है।
🎙️ खमेनेई का जवाब: “हम आत्मसमर्पण करने वाली कौम नहीं हैं”
बुधवार को अपने एक वीडियो संदेश में खमेनेई ने स्पष्ट कहा:
“ईरानी राष्ट्र कभी झुकने वाला नहीं है। अगर अमेरिका इस मामले में कूदा, तो उसे ऐसी क्षति होगी जिसकी भरपाई नहीं हो पाएगी।”
🧕 कौन हैं अली खमेनेई? सत्ता में बने रहने की कहानी
✝️ क्रांति के बाद सत्ता का हस्तांतरण
1989 में जब अयातुल्ला खुमैनी का निधन हुआ, तब खमेनेई ने सत्ता संभाली। उस वक्त वह एक मध्यम दर्जे के मौलवी थे और खुमैनी जितनी धार्मिक प्रतिष्ठा उनके पास नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद, उन्होंने धीरे-धीरे ईरान को एक कट्टर धार्मिक राष्ट्र में बदल दिया।
🛡️ रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स – उनकी असली ताकत
खमेनेई ने ईरान की Revolutionary Guard को मजबूत कर उसे सिर्फ एक मिलिट्री नहीं, बल्कि राजनीति, अर्थव्यवस्था और विदेश नीति तक का हिस्सा बना दिया। इसी गार्ड की मदद से उन्होंने देश की हर बगावत को कुचला।
विरोधों को कुचलने का लंबा इतिहास
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1990 के दशक में सुधारवादी आंदोलन आया, जिसे खमेनेई ने मौलवियों के ज़रिए रोक दिया।
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2009, 2017, 2019 और 2022 में लगातार बड़े आंदोलन हुए, जिनमें हजारों गिरफ्तारियां और सैकड़ों मौतें हुईं – खासकर महसा अमीनी की मौत के बाद हुए प्रदर्शनों ने दुनियाभर में सुर्खियां बटोरी थीं।
🌍 ईरान को बनाया क्षेत्रीय ताकत
जब खमेनेई सत्ता में आए, तब ईरान इराक युद्ध से थका हुआ और अलग-थलग था। लेकिन उन्होंने धीरे-धीरे एक "Axis of Resistance" खड़ा किया, जिसमें शामिल थे:
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इराक की शिया मिलिशिया
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सीरिया के बशर अल-असद
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लेबनान का हिज़्बुल्लाह
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हमास (गाजा)
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हूथी विद्रोही (यमन)
इन सभी को हथियार, ट्रेनिंग और पैसे देकर खमेनेई ने इज़रायल के चारों ओर एक जाल बुन दिया।
🧨 लेकिन अब हालात बदल गए हैं
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हमास को इज़रायल ने गाजा में पंगु कर दिया है।
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हिज़्बुल्लाह पर कई महीनों से बमबारी हो रही है और उसकी कमर टूट चुकी है।
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सीरिया में बशर अल-असद को उखाड़ फेंका गया है, और अब दमिश्क में एक ईरान विरोधी सरकार है।
इसका मतलब साफ है – ईरान का बनाया गया पूरा तंत्र बिखर चुका है।
⏳ क्या ये खमेनेई का आखिरी मोड़ है?
इतिहासकार मानते हैं कि जितनी आंतरिक और बाहरी चुनौती अभी खमेनेई को मिल रही है, वैसी 1979 की क्रांति के बाद कभी नहीं देखी गई।
अब सवाल यह है:
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क्या खमेनेई इस बार भी बच निकलेंगे?
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या फिर ईरान में सत्ता परिवर्तन का दौर शुरू हो चुका है?


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