अब बस मोदी और जिनपिंग से होगी बात, ट्रंप को नहीं करूंगा कॉल; टैरिफ वॉर के बीच ब्राजील का ऐलान:

अब बस मोदी और जिनपिंग से होगी बात, ट्रंप को नहीं करूंगा कॉल; टैरिफ वॉर के बीच ब्राजील का ऐलान

अब बस मोदी और जिनपिंग से होगी बात, ट्रंप को नहीं करूंगा कॉल; टैरिफ वॉर के बीच ब्राजील का ऐलान

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जब भी अगर ग्लोबल इकनोमिक की बात हो तो और USA और चाइना की बात आती है जिससे की जब चाइना और USA का टैरिफ वर हो तो छोटे देश देव्लोप करने के लिया समय के हिसाब से नये डायरेक्शन लेना संभव है |इसी सन्दर्भ में ब्राजील के राष्ट्रपति का एक बोल्ड और स्पास्ट बयान सामने आया है जिसे उन्होंने कहा है कि अब वो सिर्फ मोदी और जिनपिंग से बात करेंगे, और डोनाल्ड ट्रम्प को कॉल नहीं करेंगे। इस बयान ने दुनिया भर के राजनीति और आर्थिक वृत्ति में हलचल मचा दी है, क्योंकि ब्राजील जैसे बड़े दक्षिण अमेरिकी देश का ऐसा कदम लेना कोई छोटी बात नहीं है।


टैरिफ वॉर का ग्लोबल अर्थव्यवस्थ पर प्रभाव

पिछले कई सैलून से अमेरिका और चीन के बीच व्यापार और टैरिफ को लेकर तनाव बना हुआ है। इसके चलते वैश्विक बाजार में अनिश्चितता बढ़ती जा रही है। जब दो आर्थिक दिग्गज एक दूसरे पर आयात शुल्क बढ़ाते हैं तो उसका प्रभाव सिर्फ उन दोनों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरा विश्व व्यापार प्रभावित होता है। विकासशील देशों जैसे ब्राजील, भारत और दक्षिण अफ्रीका के लिए ये एक कठिन स्थिति बन जाती है जहां उन्हें रणनीतिक निर्णय लेना पड़ता है - किस पक्ष वो खड़े हैं। ब्राजील ने इस बार अपना पक्ष क्लियर कर दिया है।

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ब्राजील का ये बयान क्या दर्शाता है?

ब्राजील के राष्ट्रपति ने जो कहा उसका सिद्ध अर्थ ये है कि वो अब अपने आर्थिक और भूराजनीतिक फायदे के लिए नए गठबंधनों की तरफ बढ़ना चाहते हैं। उनका कहना है कि मोदी और जिनपिंग जैसे नेताओं के साथ बातें, उनके देश के लिए अधिक उपयोगी होंगी। इस बात को अनहोनी टैरिफ युद्ध की पृष्ठभूमि में रखा गया, जहां अमेरिका की आक्रामक नीतियों ने कई देशों को असुविधा में डाल दिया है। ट्रम्प की 'अमेरिका फ़र्स्ट' नीति ने पुराने मित्रों को भी दूर कर दिया है। ऐसे में ब्राजील का ये कहना कि अब ट्रंप से कॉल नहीं करेगा, एक प्रतीकात्मक संदेश है कि ब्राजील नई वैश्विक साझेदारी की तरफ देख रहा है।

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भारत का इस समीकरण में क्या भूमिका है?

भारत, जो खुद भी एक उभरती हुई महाशक्ति है, उसके लिए ये एक अवसर है। ब्राजील जैसा देश का भरोसा जितना और नए रणनीतिक संबंध बनाना, भारत की विदेश नीति के लिए एक सफलता कहा जा सकता है। मोदी जी का प्रभाव आज दुनिया भर में बढ़ा है और उनकी विदेश यात्राओं और बहुपक्षीय बैठकों में सक्रिय भागीदारी ने भारत की छवि को एक जिम्मेदार और दूरदर्शी देश के रूप में स्थापित किया है। अगर ब्राजील जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था का भरोसा भारत पर बढ़ रहा है तो इस दोनों देशों के बीच व्यापार, प्रौद्योगिकी, रक्षा और संस्कृति का अदन-प्रदान भी भविष्य में बढ़ने की संभावनाएँ बन रही हैं।


चीन का प्रभाव और जिनपिंग की रणनीति

जिनपिंग भी आज वैश्विक मंच पर एक मजबूत नेता के रूप में उभरे हैं। उनकी बेल्ट एंड रोड पहल और अफ्रीकी देशों में निवेश ने चीन को विकासशील देशों के बीच लोकप्रिय बनाया है। ब्राजील का ये कहना है कि वो जिनपिंग से बात करेगा, ये भी दरसता है कि चीन की सॉफ्ट पावर और निवेश आधारित कूटनीति अपना असर दिखाने लगी है। चीन के पास व्यापार और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में एक विशाल पारिस्थितिकी तंत्र है जो ब्राजील जैसे देशों को आकर्षित करता है। ये ब्राजील के लिए भी एक अवसर है कि वो चीनी राजधानी और प्रौद्योगिकी का उपयोग अपने विकास के लिए करें।


अमेरिका के लिए क्या मतलब है इस बदलाव का?

जब एक प्रमुख सहयोगी जैसा ब्राजील कह देता है कि वो ट्रम्प से बात नहीं करेगा, तो ये अमेरिका के लिए एक वेक-अप कॉल है। अमेरिकी विदेश नीति को कई देशों ने 'अहंकार से प्रेरित' और एकतरफा माना है। जब ट्रम्प ने टैरिफ वॉर शुरू किया था तो अनेक देशों पर ड्यूटी लगाई थी बिना किसी परामर्श के। ब्राज़ील का ये कदम उसी निराशा का है। ये एक संकेत है कि अगर अमेरिका को अपनी विश्वसनीयता और नेतृत्व को बरकरार रखना है तो नई तारीख़ से कूटनीति और व्यापार के दृष्टिकोण के बारे में सोचना होगा।


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 वैश्विक व्यापार संबंधों में नया दौर

क्या बदलाव का मतलब यह है कि वैश्विक व्यापार संबंध एक नए दौर में प्रवेश कर रहे हैं। जहां पहले अमेरिका एक वैश्विक नेता था जिसका हर देश पालन करता था, वहीं अब नए डंडे उबर के सामने आ रहे हैं - भारत और चीन के रूप में। डोनो देश अब नए आर्थिक और राजनीतिक गठबंधन बना रहे हैं जिसमें लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और दक्षिण एशिया शामिल हैं। ब्राज़ील का ये बयान दर्शाता है कि वो नए वैश्विक ध्रुवों का हिसा बनना चाहता है जहां शक्ति संतुलन अमेरिका के अलावा भी अस्तित्व में है।

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ब्राजील, भारत और चीन का त्रिपक्षीय बांड

अगर ब्राजील, भारत और चीन एक नए त्रिपक्षीय सहयोग के तरफ बढ़ते हैं तो इसे नए आर्थिक ब्लॉक पर रोक लगाई जा सकती है। ब्रिक्स जैसे फोरम पहले से ही देशों के बीच बॉन्डिंग का एक उदाहरण हैं। ऐसे में अगर ब्राजील सक्रिय रूप से मोदी और जिनपिंग से संपर्क बनाकर व्यापार और विकास पर ध्यान केंद्रित करता है तो ये गरीब ग्लोबल साउथ के लिए एक मिसाल बन सकता है। ये तीन देश कृषि, फार्मा, प्रौद्योगिकी, जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा के क्षेत्रों में नए नवाचार ला सकते हैं।


आर्थिक हित और रणनीतिक स्थिति

ये भी याद रखना चाहिए कि किसी भी देश के फैसले सिर्फ राजनीतिक नहीं होते, उसके पीछे मजबूत आर्थिक हित छुपे होते हैं। ब्राजील की अर्थव्यवस्था अभी भी कृषि, खनन और ऊर्जा निर्यात पर निर्भर है। भारत और चीन, दोनो ही बड़े उपभोक्ता बाजार हैं। अगर ब्राजील दोनों देशों से रणनीतिक साझेदारी बनाता है तो उसके निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है। साथ ही, संयुक्त उद्यम, विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में भी विकास की संभावनाएं बढ़ती हैं।


 भारत के लिए ये अवसर का समय

मोदी जी के लिए यह एक कूटनीतिक अवसर है। जब दुनिया के देश अमेरिका से निराश हैं, तब भारत एक तटस्थ, स्थिर और सहयोगी भागीदार के रूप में उभर सकता है।ब्राजील जैसा देश अगर भारत की तरफ भरोसा दिखा रहे हैं तो ये भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय मंच पर और शानदार देता है। भारत को इस समय सक्रिय कूटनीति की जरूरत है, ब्राजील के साथ कई क्षेत्रों में एमओयू, व्यापार सौदे और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाना चाहिए।


 ग्लोबल पॉलिटिक्स का बदलता हुआ मैप

आख़िर में कहना ये होगा कि वैश्विक राजनीति कभी स्थिर नहीं रहती। जो कभी सुपरपावर होते हैं, उनकी जगह नए खिलाड़ी ले लेते हैं। ब्राजील का ये बयान ये दरसाता है कि अब दुनिया एक नए राजनीतिक मानचित्र की तरफ बढ़ रही है जहां नए गठबंधन, नए नेता और नए विचारधाराएं हावी होंगी। मोदी और जिनपिंग जैसे नेता, जो व्यावहारिक और भविष्यवादी निर्णय लेते हैं, उनकी तरफ दुनिया का झुकाव बढ़ रहा है। अमेरिका के लिए ये समय है आत्मनिरीक्षण का, जबकी भारत और चीन के लिए ये समय है नेतृत्व दिखाने का।


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